एक्सक्लुसिव रिपोर्ट: पाकुड़ जिले के हिरणपुर प्रखंड में पत्थर माफियाओं का बोलबाला किसी से छिपा नहीं है। लेकिन अब जो जानकारी सामने आ रही है, वह और भी चौंकाने वाली है। बताया जाता है कि माफियाओं की गाड़ियों के लिए एक अलग “स्पेशल सड़क” है। यह सड़क दिन में बंद रखी जाती है, लेकिन शाम 7 बजे से सुबह 7 बजे तक खुल जाती है। इसी रास्ते से सैकड़ों ट्रक ओवरलोड चिप्स लेकर बिना वैध माइनिंग पास के निकलते हैं।
चेकपोस्ट के पास से गुजरते ट्रक
स्थानीय लोगों का कहना है कि यह सड़क चेकपोस्ट से महज़ 20 मीटर की दूरी पर है। इतनी नजदीक होने के बावजूद, प्रतिदिन सैकड़ों ट्रक गुजर जाते हैं और किसी भी तरह की जांच नहीं होती। सवाल उठता है कि आखिर इतनी बड़ी गतिविधि प्रशासन की जानकारी के बिना कैसे संभव है?
“नीचे से ऊपर तक रेट फिक्स”
ग्रामीणों और सूत्रों के मुताबिक, माफियाओं का नेटवर्क बेहद मजबूत है। आरोप है कि “नीचे से लेकर ऊपर तक” अधिकारियों की दरें फिक्स कर दी गई हैं। यही वजह है कि न तो जिला प्रशासन और न ही स्थानीय पुलिस कोई ठोस कार्रवाई करती है।
एक स्थानीय दुकानदार ने नाम न छापने की शर्त पर कहा कि यहां रात भर ट्रकों की लाइन लगी रहती है। सबको पता है कि कौन गाड़ियां चला रहा है और कहां जा रही हैं। लेकिन कोई रोकने वाला नहीं है। कार्रवाई होती तो इतना बड़ा खेल संभव ही नहीं होता।
सरकार को हो रहा करोड़ों का नुकसान
विशेषज्ञों का कहना है कि इस अवैध कारोबार से प्रतिदिन लाखों रुपये का राजस्व चोरी होता है। सालाना आंकड़ा जोड़ें तो यह नुकसान करोड़ों में पहुंच जाता है। जबकि दूसरी ओर पत्थर माफिया बेखौफ होकर मुनाफा कमा रहे हैं।
प्रशासन की चुप्पी और जनता की नाराज़गी
सबसे बड़ी चिंता की बात यह है कि इतने बड़े पैमाने पर अवैध गतिविधि के बावजूद अब तक किसी अधिकारी ने मौके पर पहुंचकर जांच तक नहीं की। स्थानीय लोगों का आरोप है कि प्रशासन की चुप्पी खुद ही सब कुछ बयान कर रही है।
एक ग्रामीण ने कहा अगर चाहें तो प्रशासन एक रात में पूरे खेल को रोक सकता है। लेकिन यहां तो ऊपर तक सब शामिल हैं। इसलिए किसी को डर नहीं है।
असर और सवाल
यह अवैध पत्थर कारोबार न केवल सरकार की आमदनी पर चोट कर रहा है, बल्कि पर्यावरण को भी नुकसान पहुंचा रहा है। ओवरलोड ट्रकों से सड़कें टूट रही हैं, प्रदूषण बढ़ रहा है और दुर्घटनाओं का खतरा भी बना रहता है।
अब सवाल यह है कि क्या प्रशासन इस पर कार्रवाई करेगा? क्या पत्थर माफियाओं के इस “स्पेशल रास्ते” का सच उजागर होगा? या फिर यह खेल ऐसे ही चलता रहेगा?