काल्पनिक फोटो
जहाँ पद सेवा नहीं, सौदेबाज़ी का साधन हो जाए, वहाँ लोकतंत्र दम तोड़ने लगता है. “जनसेवा नगर” में बीते कुछ वर्षों से जो घटनाक्रम चल रहा है, वह न केवल व्यवस्था के भीतर पनपते भ्रष्टाचार का ज्वलंत उदाहरण है, बल्कि यह इस प्रश्न को भी जन्म देता है कि जनता आखिर किसे चुने और किस पर भरोसा करे? यह कहानी है एक सरकारी व्यक्ति और उसकी पत्नी की है। जिन्होंने पद और जनादेश का इस्तेमाल जनसेवा नहीं, बल्कि जनशोषण के लिए किया। जिस व्यक्ति को सरकारी वेतन सेवा के बदले मिलता है, वह अपने अधिकार का प्रयोग कर लोगों से नौकरी दिलाने के नाम पर मोटी रकम वसूलता है। दूसरी ओर, उसकी पत्नी जो जनता द्वारा चुनी गई। उसी जनता के कार्यों में रुकावटें और सौदेबाज़ी का ज़रिया बन जाती है।
काम करवाना है? तो कमीशन तय करो!
योजना का लाभ चाहिए? तो ‘सेटिंग’ करो!
यह भाषा अब “जनसेवा नगर” की पहचान बन चुकी है। पति-पत्नी की जोड़ी ने पद का इस्तेमाल केवल सत्ता दिखाने में नहीं किया, बल्कि इस गठजोड़ में कई अधिकारी भी शामिल थे। जिनसे इनके संबंध मजबूत थे। फाइलें वहीं अटकती थीं जहाँ इशारा होता, और वहीं चलती थीं जहाँ जेब गर्म होती। यह भ्रष्टाचार का कोई मामूली मामला नहीं, यह एक “संस्थागत ठगी” है, जिसमें लोगों से नौकरी दिलाने का वादा किया गया, योजनाओं का लाभ रोका गया, और जब काम नहीं हुआ, तो बदले में मिला चुप्पी और धमकी। इस गिरोह ने सिर्फ लोगों को नहीं ठगा, बल्कि गाँवों की उम्मीदों और युवाओं के सपनों को कुचला। कई युवाओं ने हज़ारों-लाखों की रकम दी। कोई ज़मीन गिरवी रखकर, कोई कर्ज़ लेकर। लेकिन न नौकरी मिली, न पैसा लौटा। और 2 साल तक न्याय का सिर्फ़ आश्वासन ही मिलता रहा। अब जब लोगों ने एकजुट होकर आवाज़ उठाई, तो आरोपियों ने फिर वही ढाल थामी।
हम पर तो साज़िश हो रही है, राजनीतिक बदले की भावना है।
“भ्रष्टाचार का हेडक्वार्टर” कोई भवन नहीं, यह एक मानसिकता है, एक गठजोड़ है, एक संस्कृति है, जो इस देश की हर गली-कचहरी में फैल चुकी है। यदि ऐसे व्यक्तियों पर सख़्त कार्रवाई नहीं हुई, तो आने वाली पीढ़ियों के सामने लोकतंत्र सिर्फ़ “वोट डालने का त्योहार” रह जाएगा, जिसके बाद सत्ता फिर से ठगी का अड्डा बन जाएगी। कहानी में अभी कई परतें खुलने बाकी हैं। जनता देख रही है, देश देख रहा है कि क्या इस हेडक्वार्टर का ताला टूटेगा? या भ्रष्टाचार को फिर से एक नया पता मिल जाएगा…?
(नोट: यह लेख पूर्णतः काल्पनिक है। इसका किसी जीवित व्यक्ति या संस्था से कोई संबंध नहीं है। यदि कोई समानता प्रतीत हो तो वह मात्र संयोग है।)