सरायकेला : जब बच्चों ने उठाई आवाज़, प्रशासन को झुकना पड़ा। उत्क्रमित मध्य विद्यालय, कुकड़ू में प्रधानाध्यापक की वापसी के पीछे की कहानी सिर्फ एक तबादले की नहीं, एक संघर्ष, एक भावनात्मक जुड़ाव और सशक्त सामुदायिक प्रतिक्रिया की मिसाल है। जब प्रधानाध्यापक संजीव कुमार बनर्जी का प्रतिनियोजन चांडिल प्रखंड के उ.म.वि. मुसरीबेड़ा में कर दिया गया, तब शायद ही किसी ने सोचा होगा कि इसका असर इतना व्यापक होगा। लेकिन स्कूल के छात्र-छात्राएं, अभिभावक और प्रबंधन समिति सभी ने एकजुट होकर आवाज़ बुलंद की। सोमवार को विद्यालय में आपात बैठक हुई, जिसमें शिक्षक, जनप्रतिनिधि और ग्रामीण जुटे। बच्चों की पढ़ाई, शिक्षक की कमी और स्कूल की सुरक्षा जैसे मुद्दों पर खुलकर बात हुई।
बच्चों का मार्च बना जनभावना की आवाज़
मध्याह्न अवकाश के बाद बच्चों का अनुशासित मार्च, तीन कतारों में स्कूल से करीब 250 मीटर दूर कुकड़ू प्रखंड कार्यालय तक पहुँचना, प्रशासन के लिए एक बड़ा संदेश था। उनके हाथों में कोई बैनर नहीं था, लेकिन आँखों में भाव थे, सवाल थे और एक अपील थी कि हमारे सर को वापस दीजिए। कुकड़ू के अंचल अधिकारी सत्येंद्र नारायण पासवान स्वयं बाहर आए, बच्चों से बात की और आश्वासन दिया कि उनकी बात वरीय अधिकारियों तक पहुँचाई जाएगी।
प्रतिनियोजन के पीछे की इनसाइड स्टोरी
विश्वसनीय सूत्रों की मानें तो संजीव कुमार बनर्जी और विद्यालय की एक पारा शिक्षिका के बीच लंबे समय से आपसी तनाव चला आ रहा था। स्थिति कई बार थाना तक पहुँची। अंततः खुद संजीव बनर्जी ने ही स्वेच्छा से प्रतिनियोजन का अनुरोध किया, जिसे शिक्षा विभाग ने स्वीकार कर लिया। लेकिन मामला यहीं नहीं रुका। शिक्षकों की कमी, बुनियादी ढाँचे की खामियाँ भी चर्चा में 334 छात्रों वाले इस स्कूल में प्रतिनियोजन के बाद सिर्फ चार शिक्षक (दो सरकारी, दो पारा) ही बचते। वहीं, विद्यालय परिसर की चाहरदीवारी नहीं होने के कारण छात्रों की सुरक्षा को लेकर भी सवाल खड़े हुए। मुख्य सड़क से सटे इस विद्यालय में सुरक्षा एक अहम मुद्दा बन चुकी थी।
खबर का असर: संजीव बनर्जी की वापसी का आदेश जारी
इस पूरे घटनाक्रम का अंत खुशखबरी के साथ हुआ। जिला शिक्षा अधीक्षक कैलाश कुमार मिश्रा ने सोमवार को एक कार्यालय आदेश जारी कर संजीव बनर्जी को पुनः उत्क्रमित मध्य विद्यालय, कुकड़ू में योगदान देने का निर्देश दिया। पत्र में साफ़ उल्लेख किया गया कि विधि-व्यवस्था बनाए रखने और छात्रों की मांग को देखते हुए यह फैसला लिया गया। जैसे ही यह खबर स्कूल और गाँव तक पहुँची, बच्चों और अभिभावकों में खुशी की लहर दौड़ गई। कई छात्र तो यह सुनकर भावुक हो गए कि उनके “सर” वापस आ रहे हैं।
एक पत्रकार की रिपोर्टिंग बनी बदलाव की बुनियाद
इस पूरे घटनाक्रम को एक स्थानीय पत्रकार ने सशक्त रूप से उठाया। स्कूल से बच्चों के मार्च की फेसबुक पर लाइव कवरेज, अभिभावकों की भावनाएं, शिक्षा व्यवस्था की सच्चाई और इनसाइड स्टोरी। सबकुछ वरीय अधिकारी तक पहुँचाया। यह उन दुर्लभ उदाहरणों में से एक है जहां पत्रकार ने न केवल सवाल उठाया, बल्कि बदलाव भी सुनिश्चित किया।
ये सिर्फ एक शिक्षक की वापसी नहीं, शिक्षा और संवेदना की जीत है
अब सबकी निगाहें इस बात पर हैं कि शिक्षा विभाग इस विद्यालय में शेष समस्याओं जैसे शिक्षक की बहाली, सुरक्षा को लेकर चाहरदीवारी का निर्माण और मिड डे मील की गुणवत्ता पर भी संज्ञान लेता है या नहीं। संजीव बनर्जी की वापसी इस बात का प्रतीक है कि जब बच्चे और अभिभावक संगठित होकर खड़े होते हैं, तो प्रशासन भी सुनता है। और जब एक पत्रकार अपनी कलम और संवेदना के साथ खड़ा होता है, तो बदलाव की स्क्रिप्ट लिखी जाती है।