रांची : बुधवार को ट्राइबल इंडियन चैंबर ऑफ़ कॉमर्स एंड इंडस्ट्री (TICCI) ने झारखंड हाई कोर्ट द्वारा पेसा कानून लागू होने तक बालू एवं लघु खनिज खदान की नीलामी पर रोक लगाने के फैसले का स्वागत किया। TICCI के प्रदेश अध्यक्ष बैद्यनाथ मांडी ने कहा कि यह फैसला निश्चित रूप से आम जनता का न्यायपालिका के प्रति विश्वास बढ़ाएगा। मांडी ने राज्य सरकार द्वारा निकाले गए बालू घाटों का ग्रुप निविदा पर कड़ा विरोध जताया। उन्होंने कहा कि अनुसूचित क्षेत्र में बालू घाट पर पहला अधिकार स्थानीय आदिवासियों और ग्राम सभा का है। पेसा अधिनियम धारा 4(d), समता जजमेंट (सुप्रीम कोर्ट 1997), झारखंड हाई कोर्ट और वन अधिकार अधिनियम 2006 सभी ने स्पष्ट किया है कि अनुसूचित क्षेत्र में ग्राम सभा की अनुमति के बिना संसाधनों का दोहन गैर कानूनी है।
मांडी ने आरोप लगाया कि राज्य सरकार ने नियम कानून की अवहेलना करते हुए बाहरी ठेकेदारों को लाभ पहुँचाने के लिए निविदा आमंत्रित की। उन्होंने कहा कि निविदा में ऐसी शर्तें रखी गईं कि स्थानीय आदिवासी इसका लाभ नहीं उठा पाए। इसके बजाय, बालू घाटों की अलग-अलग निविदा जारी की जानी चाहिए ताकि स्थानीय आदिवासी युवाओं या उनके द्वारा संचालित कोऑपरेटिव संस्थाओं को उद्योग धंधों से जोड़ा जा सके। मांडी ने सरकार से अनुरोध किया कि अनुसूचित क्षेत्र में बालू घाट और अन्य लघु खनिज संपदा के लिए निविदाओं में स्थानीय आदिवासी युवाओं और कोऑपरेटिव संस्थाओं के लिए पूर्ण आरक्षण सुनिश्चित किया जाए। उन्होंने कहा कि पड़ोसी राज्य छत्तीसगढ़ में आदिवासी उद्यमिता बोर्ड जैसी पहल की जा चुकी है, जबकि झारखंड में आज भी आदिवासी युवाओं को आर्थिक रूप से सशक्त बनाने के लिए कोई ठोस योजना नहीं है। मांडी ने निष्कर्ष देते हुए कहा, आज स्वतंत्रता के 75 वर्ष बाद भी आदिवासी अपने अस्तित्व और आर्थिक सुधार के लिए संघर्षरत हैं। राज्य सरकार को उनके अधिकार और विकास के लिए सक्रिय कदम उठाने होंगे।