आज चांडिल अनुमंडल अपनी स्थापना के 22 वर्ष पूरे कर रहा है। 31 अगस्त 2003 को इसे प्रशासनिक सुगमता और जनता की सुविधा के उद्देश्य से अनुमंडल का दर्जा दिया गया था। इस दौरान निस्संदेह कुछ बदलाव हुए हैं, परंतु यह भी एक सच्चाई है कि जनता की बुनियादी अपेक्षाएं आज भी अधूरी हैं।
स्वास्थ्य सेवाओं की स्थिति संतोषजनक नहीं है। अनुमंडल में अब तक एक भी ढंग का अस्पताल स्थापित नहीं हो पाया। प्राथमिक और सामुदायिक स्वास्थ्य केंद्रों की हालत यह है कि वहाँ डॉक्टरों की उपलब्धता बेहद सीमित है। गंभीर बीमारी की स्थिति में लोगों को अब भी बड़े शहरों की ओर जाना पड़ता है। इसी तरह शिक्षा के क्षेत्र में भी बड़ी खामियाँ बनी हुई हैं। बेहतर कॉलेज का अभाव और विद्यालयों में शिक्षकों की कमी के कारण युवाओं को गुणवत्तापूर्ण शिक्षा प्राप्त करने के लिए बाहर जाना पड़ता है। इसका सीधा असर रोज़गार और पलायन पर देखा जा सकता है।
रोज़गार की व्यवस्था अनुमंडल के लिए अब भी सबसे बड़ी चुनौती है। योजनाएं और घोषणाएं लाखों हुए, परंतु ज़मीनी स्तर पर उनका लाभ सीमित ही पहुँच पाया। यही कारण है कि हज़ारों युवा आज भी रोज़गार की तलाश में राज्य से बाहर जाते हैं।
चांडिल डैम, जो इस क्षेत्र की पहचान है, अपनी उपयोगिता को लेकर सवालों के घेरे में है। सिंचाई की व्यापक व्यवस्था अब तक नहीं हो पाई, जबकि किसानों की सबसे बड़ी ज़रूरत यही है। दूसरी ओर, डैम निर्माण के समय विस्थापित हुए परिवार आज भी मुआवज़े और पुनर्वास की प्रतीक्षा में हैं। यह पीड़ा अनुमंडल की विकास यात्रा पर प्रश्नचिह्न लगाती है।
इसके अतिरिक्त औद्योगिक गतिविधियों और अव्यवस्थित खनन के कारण प्रदूषण बढ़ा है। इसका प्रभाव खेती, स्वास्थ्य और पर्यावरण पर स्पष्ट देखा जा सकता है। विकास और पर्यावरण के बीच संतुलन बनाना आज की सबसे बड़ी आवश्यकता है।
स्थापना दिवस केवल एक उत्सव नहीं, बल्कि आत्मचिंतन का अवसर होना चाहिए। जनता के मन में अब भी यही सवाल है। अस्पताल कब मिलेगा, कॉलेज कब बनेगा, रोज़गार कब उपलब्ध होगा, विस्थापित परिवारों को कब न्याय मिलेगा और डैम का पानी कब किसानों के खेतों तक पहुँचेगा?
चांडिल अनुमंडल की 22वीं वर्षगांठ पर यही संदेश होना चाहिए कि अब समय केवल जश्न मनाने का नहीं, बल्कि शिक्षा, स्वास्थ्य, रोज़गार, सिंचाई और विस्थापन जैसी समस्याओं पर ठोस कदम उठाने का है। यदि इन क्षेत्रों में सुधार हुआ, तभी अनुमंडल की स्थापना का वास्तविक उद्देश्य पूरा होगा और आने वाली पीढ़ियाँ इसे विकास की इकाई के रूप में गर्व से देख सकेंगी।