खबर झारखंड डेस्क : भारत के इतिहास में कुछ व्यक्तित्व ऐसे होते हैं, जो समय की सीमाओं से परे जाकर राष्ट्र की चेतना में स्थायी रूप से बस जाते हैं। डॉ. ए.पी.जे. अब्दुल कलाम ऐसे ही एक युगद्रष्टा थे। एक वैज्ञानिक, शिक्षक, दार्शनिक, विचारक, राष्ट्र निर्माता और जनता के राष्ट्रपति, उनकी पहचान किसी एक परिचय में नहीं बंध सकती। 15 अक्टूबर 1931 को तमिलनाडु के रामेश्वरम में जन्मे डॉ. कलाम ने बेहद साधारण पारिवारिक पृष्ठभूमि से निकलकर असाधारण ऊँचाइयों को छुआ। मद्रास इंस्टीट्यूट ऑफ टेक्नोलॉजी से एरोनॉटिकल इंजीनियरिंग में विशेषज्ञता लेने के बाद उन्होंने वैज्ञानिक के रूप में अपने करियर की शुरुआत की। भारतीय अंतरिक्ष अनुसंधान संगठन (ISRO) में उन्होंने भारत के पहले स्वदेशी सैटेलाइट लॉन्च व्हीकल (SLV-III) के विकास में परियोजना निदेशक की भूमिका निभाई, जिसके माध्यम से जुलाई 1980 में ‘रोहिणी’ उपग्रह को पृथ्वी की कक्षा में सफलतापूर्वक स्थापित किया गया। इस ऐतिहासिक सफलता ने भारत को अंतरिक्ष क्लब के चुनिंदा देशों की सूची में ला खड़ा किया।
मिसाइल तकनीक और आत्मनिर्भर भारत का सपना
ISRO में दो दशकों तक कार्य करने के बाद डॉ. कलाम ने रक्षा अनुसंधान एवं विकास संगठन (DRDO) में कदम रखा और इंटीग्रेटेड गाइडेड मिसाइल डेवलपमेंट प्रोग्राम (IGMDP) का नेतृत्व किया। ‘अग्नि’ और ‘पृथ्वी’ जैसी मिसाइलों के सफल विकास और भारत के सामरिक बल को आधुनिक बनाने में उनका अमूल्य योगदान रहा। 1998 में पोखरण-II परमाणु परीक्षणों में उन्होंने निर्णायक भूमिका निभाई। इस परीक्षण ने भारत को वैश्विक मंच पर एक परमाणु शक्ति सम्पन्न राष्ट्र के रूप में स्थापित किया।
‘भारत 2020’ और तकनीकी दृष्टिकोण
प्रौद्योगिकी सूचना, पूर्वानुमान और मूल्यांकन परिषद् (TIFAC) के अध्यक्ष के रूप में उन्होंने टेक्नोलॉजी विजन 2020 का खाका तैयार किया, जिसमें भारत को एक विकसित राष्ट्र बनाने की दिशा में रोडमैप प्रस्तुत किया गया। उन्होंने विज्ञान को समाज के साथ जोड़ते हुए शिक्षा, कृषि, पर्यावरण और स्वास्थ्य के क्षेत्र में नवाचारों को बढ़ावा दिया।
राष्ट्रपति नहीं, जनता के अभिभावक
25 जुलाई 2002 को वे भारत के 11वें राष्ट्रपति बने। परंतु उन्होंने उस पद को सत्ता का प्रतीक नहीं, बल्कि सेवा का माध्यम बनाया। वे पहले राष्ट्रपति थे जो स्कूलों, विश्वविद्यालयों और गांवों में जाकर बच्चों और युवाओं से सीधा संवाद करते थे। उन्होंने विज्ञान और सपनों को एक सूत्र में पिरोकर राष्ट्र निर्माण के बीज बोए। 25 जुलाई 2007 को राष्ट्रपति का पद छोड़ने के बाद वे पूरी तरह युवाओं को समर्पित हो गए। उनका मानना था कि यदि हर युवा एक जिम्मेदार नागरिक बने, तो भारत को कोई शक्ति विकसित राष्ट्र बनने से नहीं रोक सकती।
एक शिक्षक का मंच पर हुआ जीवन का अंत
डॉ. ए.पी.जे. अब्दुल कलाम का निधन 27 जुलाई 2015 को आईआईएम (IIM) शिलॉंग में एक व्याख्यान (लेक्चर) के दौरान हुआ था। उस दिन वे “Creating a Livable Planet Earth” विषय पर छात्रों को संबोधित कर रहे थे। व्याख्यान के दौरान लगभग 6:30 बजे शाम उन्हें अचानक दिल का दौरा (Cardiac Arrest) पड़ा और वे मंच पर ही गिर पड़े। उन्हें तुरंत शिलॉंग के बेतानी अस्पताल ले जाया गया, लेकिन डॉक्टरों ने उन्हें मृत घोषित कर दिया। उस समय उनकी उम्र 83 वर्ष थी।
कलाम: विचारों की विरासत
उनकी आत्मकथा “विंग्स ऑफ फायर”, “इग्नाइटेड माइंड्स”, “इंडिया 2020” जैसी पुस्तकें न केवल प्रेरणा देती हैं, बल्कि वे युवाओं की सोच बदलने का कार्य भी करती हैं। उनके विचार आज भी विद्यार्थियों, वैज्ञानिकों और नेताओं के लिए पथप्रदर्शक हैं।
भारत रत्न और उससे भी ऊपर…
डॉ. कलाम को भारत सरकार ने पद्म भूषण (1981), पद्म विभूषण (1990) और देश के सर्वोच्च नागरिक सम्मान भारत रत्न (1997) से नवाज़ा। 30 से अधिक विश्वविद्यालयों ने उन्हें मानद उपाधियाँ दीं। परंतु उनका सबसे बड़ा पुरस्कार था जनता का विश्वास। डॉ. कलाम का जीवन इस बात का प्रमाण है कि सीमित साधनों से भी असीम सपने देखे जा सकते हैं, और उन्हें साकार भी किया जा सकता है। उनकी पुण्यतिथि केवल स्मरण का नहीं, संकल्प का दिन है कि हम उनके दिखाए मार्ग पर चलें, अपने कर्तव्यों को निभाएँ और भारत को सशक्त, समावेशी और आत्मनिर्भर राष्ट्र बनाएं। उनकी एक बात आज भी दिल को छू जाती है-
“यदि आप सूरज की तरह चमकना चाहते हैं, तो पहले सूरज की तरह जलना सीखिए।”