उपराष्ट्रपति जगदीप धनखड़ का इस्तीफा, स्वास्थ्य कारण या वर्मा केस का दबाव?

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नई दिल्ली: आज मानसून सत्र के पहले ही दिन देश की सियासत में एक अप्रत्याशित मोड़ तब आया जब भारत के उपराष्ट्रपति जगदीप धनखड़ ने अपने पद से इस्तीफा दे दिया। उन्होंने राष्ट्रपति द्रौपदी मुर्मू को भेजे पत्र में स्वास्थ्य कारणों का हवाला देते हुए तत्काल प्रभाव से अपना इस्तीफा सौंपा। पत्र में उन्होंने प्रधानमंत्री, राष्ट्रपति और कैबिनेट के सहयोग के लिए आभार जताते हुए कहा कि वे डॉक्टरों की सलाह पर स्वास्थ्य देखभाल को प्राथमिकता देना चाहते हैं। धनखड़ ने भारतीय संविधान के अनुच्छेद 67(क) का उल्लेख करते हुए इस्तीफे की संवैधानिक वैधता को रेखांकित किया।

क्या यह सचमुच स्वास्थ्य कारणों से जुड़ा फैसला है?

सियासी गलियारों में इस इस्तीफे को केवल ‘स्वास्थ्य कारण’ मानना आसान नहीं लग रहा। इसकी टाइमिंग, विशेष रूप से जस्टिस यशवंत वर्मा ‘कैश कांड’ की जांच और संसद में बढ़ते दबाव के बीच, कई संभावनाओं को जन्म देती है। कुछ सप्ताह पहले ही धनखड़ ने इस हाई-प्रोफाइल मामले में सख्त रुख अपनाया था। उन्होंने न्यायपालिका की इन-हाउस जांच प्रक्रिया की आलोचना करते हुए एफआईआर दर्ज करने की मांग की थी। उनकी टिप्पणियाँ तीखी थीं।

यह गंभीर मामला है। अगर किसी आम नागरिक के पास इतनी नकदी मिलती, तो जांच रॉकेट की रफ्तार से होती। क्या न्यायपालिका से जुड़े नामों की वजह से जांच में ढील दी जा रही है?”

उन्होंने यह भी संकेत दिया था कि न्यायपालिका में  आंतरिक संरक्षण की प्रवृत्ति” न्यायिक पारदर्शिता को प्रभावित कर रही है।

महाभियोग प्रस्ताव और राजनीतिक हलचल

संसद में इस मामले को लेकर महाभियोग प्रस्ताव भी लाया गया था। राज्यसभा में 63 सांसदों ने इस प्रस्ताव पर हस्ताक्षर किए। वहीं लोकसभा में 208 से अधिक सांसदों ने समर्थन जताया। इस बीच, विपक्ष के वरिष्ठ नेता कपिल सिब्बल सहित कई नेताओं ने आरोप लगाया कि केंद्र सरकार और उपराष्ट्रपति चुनिंदा न्यायिक मामलों में हस्तक्षेप कर रहे हैं, जबकि कुछ मामलों में मौन धारण कर लिया जाता है। उन्होंने इसे “दोहरे मापदंड की नीति” बताया।

स्वास्थ्य बनाम दबाव

धनखड़ ने आज तक सार्वजनिक जीवन में कभी स्वास्थ्य को प्रमुख कारण नहीं बताया था। ऐसे में अचानक और संसद सत्र के पहले दिन दिया गया यह इस्तीफा न केवल चौंकाने वाला है, बल्कि संदेहों से घिरा भी है। फिलहाल राष्ट्रपति ने इस्तीफा स्वीकार कर लिया है, लेकिन नई नियुक्ति, संसदीय सत्र में उपसभापति की भूमिका, और वर्मा केस की जांच ये तीनों मोर्चे आने वाले दिनों में कई राजनीतिक संकेत देंगे।

क्या आगे खुलेंगे और राज?

सवाल अब भी कायम है. क्या धनखड़ को राजनीतिक दबाव में इस्तीफा देना पड़ा? क्या वर्मा केस में उनकी खुली आलोचना का असर उनके पद पर पड़ा? या फिर यह महज एक स्वास्थ्य-आधारित, निजी निर्णय था? इन सवालों के जवाब भविष्य के घटनाक्रम में छिपे हैं।

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