संपादकीय: भोगनाडीह की घटना झारखंड की अस्मिता पर सियासी हमला या सुनियोजित साजिश?

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रांची: 30 जून, 2025, एक ऐतिहासिक दिन, जब झारखंड अपने महान शहीदों की शौर्यगाथा हूल दिवस के रूप में याद करता है। लेकिन इस बार भोगनाडीह में वह आयोजन, जो जनसंग्रह और इतिहास की चेतना को मजबूती देने वाला था, राजनीतिक उथल-पुथल और षड्यंत्र के आरोपों से घिर गया।

झामुमो का आरोप है कि यह सिर्फ एक घटना नहीं, बल्कि राज्य की शांति और एकता को तोड़ने का प्रयास था। जिसे पूर्व मुख्यमंत्री चंपई सोरेन और उनके करीबी मंडल मुर्मू के इशारे पर अंजाम देने की कोशिश की गई। आरोप यह भी है कि हथियारबंद तत्वों के सहारे भाजपा समर्थित तत्वों ने झारखंड को “मणिपुर” बनाने का मंसूबा पाल रखा था। अगर इन दावों में सच्चाई है, तो यह केवल एक राजनीतिक बहस नहीं, बल्कि संविधान और राज्य की आत्मा पर चोट है।

गोड्डा पुलिस द्वारा दिए गए प्रारंभिक बयान में कुछ तथ्य सामने आए हैं- जैसे कि मंडल मुर्मू और दो अन्य अपराधियों को अवैध हथियार के साथ देखा गया। सवाल यह है कि अगर कार्यक्रम सरकारी था, और उसमें मंत्री रामदास सोरेन राज्य का प्रतिनिधित्व कर रहे थे, तो ऐसे तत्व वहां क्या कर रहे थे? और वे हथियार लेकर कैसे पहुंचे?

यह घटना भाजपा और झामुमो के बीच वर्षों से चली आ रही वैचारिक टकराव को फिर एक बार सतह पर ले आई है। झामुमो का कहना है कि भाजपा लगातार हिंदू-मुस्लिम, आदिवासी-गैरआदिवासी के नाम पर समाज को विभाजित करने का प्रयास कर रही है। वहीं भाजपा की ओर से इस पर कोई ठोस खंडन अब तक नहीं आया है, जिससे स्थिति और भी संदेहास्पद हो जाती है।

मुख्यमंत्री हेमंत सोरेन ने स्पष्ट किया है कि प्रदेश की अस्मिता और सामाजिक सौहार्द के साथ किसी भी प्रकार का समझौता नहीं किया जाएगा। उन्होंने भरोसा दिलाया कि दोषियों के खिलाफ सख्त कार्रवाई की जाएगी।

परंतु केवल आरोप-प्रत्यारोप से बात नहीं बनेगी। आवश्यक है कि जांच निष्पक्ष हो, तेज हो, और पारदर्शिता के साथ जनता के सामने लाई जाए। यदि दोषी कोई भी हो चाहे किसी भी दल या विचारधारा से जुड़ा हो कानून के अनुसार दंडित किया जाना चाहिए। वरना, हर साल हूल दिवस केवल भाषणों और साजिशों की भेंट चढ़ता रहेगा।

झारखंड एक युवा राज्य है। यहां के लोग विकास चाहते हैं, शिक्षा, स्वास्थ्य और रोजगार चाहते हैं, न कि सियासी स्टंट और बंदूकें। यदि राजनीतिक दल यही तय नहीं कर पा रहे कि उन्हें संघर्ष की विरासत को सम्मान देना है या सियासत का अखाड़ा बनाना है, तो जनता बहुत कुछ तय करने में सक्षम है।

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